मत्स्य पालन विभाग राजस्थान,2022 Fisheries Department
Fisheries Department Rajasthan - 2022 मत्स्य पालन विभाग राजस्थान का लाभ क्या है
मत्स्य पालन विभाग राजस्थान
Fisheries Department Rajasthan
योजना राजस्थान में मत्स्य पालन के अवसर ओर ऐसे स्थान पर अधिक संख्या में पाये जाते है वहा पर जैसे-तालाब, नदियाँ, झीले और बांध उपलब्ध रहते है |
इस राज्य में मत्स्य पालन के लिए कुल 15838 जल निकाय उपलब्ध है जिसको देखा जाये तो लगभग 4,23,765 हेक्टेयर क्षेत्रफल तक फेला हुआ है
मत्स्य पालन विभाग की सम्भावनाएँ
ये योजना राजस्थान में मत्स्य उद्योग का राजनैतिक, सांस्कृतिक व आर्थिक पहलुओं में अपना विशेष स्थान बनता जा रहा है राज्य सरकार द्वारा मछली पालन उद्योग के विकास के लिए बहुत से अनेक प्रयास किए गये है ओर इन प्रयासों से विगत दशकों में इसका व्यापक विस्तार किया है इस ग्रामीण क्षेत्र में मछली पालन के प्रति कृषि व पशुपालन के समान, इसकी ओर लोगों का रुचि बढ़ा दी गयी है |
इस योजना राजस्थान में मत्स्य पालन हेतु आधुनिक तकनीक व अच्छी उपलब्धता व अनेक योजनाएँ तथा प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किया गया है इसमें मत्स्य प्रसार कार्यकर्ता राजकीय प्रशिक्षण विधालय, ग्रामीण मत्स्य कृषक प्रतिक्षण, मत्स्य की महाविद्यालय व विकास कार्यक्रमों मत्स्य पालन विकास अभिकरणों और मत्स्य क्षेत्र में काम कर रहे और सरकारी समूह के दुवारा की आवश्यकता को भी शामिल किया गया है |
इस मछली पालन की सभी जानकारी के संचार के साधन कम्प्यूटर, लेपटाप, स्मार्ट फोन के द्वारा व इंटरनेट के दुवारा से अन्य विषयों की तरह मत्स्यपालन की सभी जानकारी यहा मिलेगी |
ये राजस्थान राज्य भौगोलिक दृष्टि से देश में सबसे बड़ा राज्य है राजस्थान में जल की उपलब्धि चाहे व सतही जल हो या भू-जल वर्षा पर ही निर्भर करती है भीतरी भागों से निकले नदी नाले,पहाड़ी क्षेत्र के ढलान, जल तीव्रता, मैदानी क्षेत्र, शुष्क व रेतीला क्षेत्र, मौसम परिवर्तन, कम आद्रता व उच्च तापमान इत्यादि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कई कारण है
जिसमे से जल स्रोत वर्षा के बाद सूख जाते है पूरे वर्ष के लिए जल की जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य से संगृहित किया गया है सतही जल ही राज्य में मत्स्य संसाधनो में पूर्ति करता है |
मत्स्य पालन विभाग राजस्थान
इस मत्स्य पालन विभाग राजस्थान मे राज्य में मत्स्य धन में स्थिरता व गुणवत्ता बनाये रखने में नदियों में आई बाढ़ महत्वपूर्ण भूमिका है ये राज्य के भीतरी भागों तक मछलियों को पहुँचाने में प्रवजन-मार्ग और प्रजनन के लिए उचित दशा है
इस मत्वपूर्ण जलाशयों में मछली के संचयन से उत्पादन में स्थिरता बनाये रखने में फायदा मिलता है परन्तु इसमें 60 किस्म की मछलियाँ ही व्यापारिक महत्व की है बहुगुण की कतला, रोहू, नरेन, बाराँ आदि मछलियाँ प्रचुरता से मिलती है |
ये आमतौर पर राज्य के प्रत्येक जल क्षेत्र में मछलियाँ मिल जाती है परन्तु इसकी उपलब्धता में मात्रात्मक व गुणात्मक परिवर्तन है |
“मत्स्य पालन विभाग राजस्थान के राजस्थान राज्य में मछली पालन के जल क्षेत्रों की संख्या 15838 है जलाशय, बड़े बाँध, छोटे-बड़े, मध्यम तालाबों के द्वारा कुल मछली पालन हेतु जलयुक्त क्षेत्रफल 4,23,765 हेक्टेयर क्षेत्रफल फेला हुआ है |
ये सन् 2010-11 में औसत मछली उत्पादन 28200 टन था जो पिछले 8 वर्षो के दौरान 12.2 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ा है जो राष्ट्रीय स्तर का 8 प्रतिशत था बड़े जलाशयों से 176 किलोग्राम/हैक्टेयर, छोटे,मध्यम जलाशयों एवं बड़े तालाबों से 286 किलोग्राम/हैक्टर, मध्यम तालाबों से 1125 किलोग्राम/हैक्टर, छोटे तालाबों से 1675 किलोग्राम/हैक्टर एवं जल प्राप्त तालाबों से 2050 किलोग्राम/हैक्टर औसत उत्पादन होता है |
मत्स्य पालन विभाग राजस्थान राजस्थान सरकार द्वारा 1982 में मत्स्य विभाग की स्थापना की गई थी इसमें मत्स्य क्षेत्रों का संरक्षण भी इसी विभाग द्वारा किया जाता है तथा राजस्थान मत्स्य नियम भी बने और उन्ही के अनुरूप, योजनाओं का निर्माण किया गया है |
पाँचवी पंचवर्षीय योजना में जिला स्तर पर मछली पालन क्षेत्र विकास के लिए आवश्यक निर्णय लिए गये जिसमें पायलेट प्रोजेक्ट सन् 1976 भीलवाड़ा में मत्स्य पालन विकास की स्थापना की गई है |
इस वर्ष 1996-97 तक राज्य के 15 जिलों में केन्द्रीय प्रवर्तित योजना के अनुसार मत्स्य पालन विकास अभिकरण की स्थापना की गयी है इसमे विस्तार किया गया है |
मत्स्य पालन विभाग राजस्थान” राजस्थान में मत्स्य पालक विकास अभिकरण एक ऐसी संस्था है जो सिर्फ मछली पालन को प्रोत्साहन देने अनुदान सहायक होते है |
व जिला ग्रामीण बैंक राष्ट्रीय कृषि विकास बैंक और सहकारी बैंक ऐसी संस्थाएँ है जो अनेक कार्य के लिए दी जाने वाली सहायता में मछली पालन भी शामिल है मत्स्य कृषक प्रशिक्षण,निवेश, पोखरों का जीर्णोद्धार, नवीन पोखर निर्माण पर सहायता देता है कृषकों को अनुदान मिलता है |
ये योजना राजस्थान जनजाति क्षेत्रीय विकास संघ लि योजना से राजस्थान के दक्षिणी भागों मे जिलों उदयपुर डूंगरपुर, बाँसवाड़ा सिरोही, चितौड़गढ़, कोटा आदि में मछलीपालन ने अच्छी उन्नति होती है |
राजस्थान में मछली का बीज कहाँ मिलता है
मत्स्य पालन विभाग राजस्थान ने मछली बीज उत्पादन केन्द्र है | कोटा, रावतभाटा, भीलवाड़ा, बाँसवाड़ा, अलवर जिलों में तथा निजी उत्पादक चौधरी केंद्र हनुमानगढ़ व छतीसगढ़ से मछली बीज प्राप्त किये जाते है |
इस योजना मे मछली बीज राज्य में 28 सरकारी बीज खेत है लेकिन अधिकतर जल की कमी एवं इनकी संरचना का सही ढंग से नही होने से अच्छे रूप में नही है |
मच्छी पालन योजना
इस योजना का उद्देश्य देश में मछली पालन योजना को आगे बढ़ावा देने के लिए है ओर उसके अनुसार मछली की गुणवता, उत्पादकता आदि जैसी चीजो को मजबूताई देना होता है जबकि केन्द्र सरकारे देश के किसानों की आय बढ़ाने के लिए योजना चलाई जा रहीं है |
राजस्थान मत्स्य पालन योजना अधिनियम
इस राजस्थान में मत्स्य पालन योजना काफी समये से ही है जैसे-तालाब, नदियाँ, झीले और बांध उपलब्ध है मत्स्य पालन किया जाता है राजस्थान राज्य में मछली पालन के जल क्षेत्रों की संख्या 15838 है जलाशय, बड़े बाँध, छोटे-बड़े, मध्यम तालाबों के द्वारा कुल मछली पालन हेतु जलयुक्त क्षेत्रफल 4,23,765 हेक्टेयर क्षेत्रफल उपलब्ध है |
मछली पालन लोन राजस्थान
इस मत्स्य पालन को प्रोत्साहन देने के लिए इस राज्य में ऐसे कई ईसी सरकारी बैंक है जो तालाब सुधार के लिए 75-80 हजार रूपये देती है तथा निजी भूमि पर नये तालाब के लिए 3-4 लाख का लोन देते है |
राजस्थान बीज खेत व हेचरिया
काशीमपुर राष्ट्रीय बीज खेत, कोटा
सूर सागर, कोटा
चौहान मछली हेचरी, हनुमानगढ़
मत्स्य पालन कॉलेज, उदयपुर
आर.टी.ए.डी.सी.एफ हेचरी, जयसमन्द, उदयपुर
गावड़ी बीज खेत, भीलवाड़ा
रावतभाटा बीज खेत, कोटा
अर्द्ध कार्यात्मक हेचरिज
भीमपुर राष्ट्रीय बीज खेत, बाँसवाड़ा
सिल्जेड बीज खेत, अलवर
मत्स्य पालन का महत्व
भोजन के रूप में :-
इस योजना मे मछली का मांस पूर्ण प्रोटीन है जिसमे सभी अमीनों अम्ल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहते है इसमें वसा कम एवं खनिज लवण विटामिन A एवं डी तथा आयोडीन समद्व मात्रा में होते है |
मछली प्रोटीन का पाचन व अवशोषण वनस्पति प्रोटीन की अपेक्षा अधिक आसानी से होता है अत यह बच्चो, गर्भवती महिलाओं एवं माताओं तथा लम्बी बीमारी से ठीक हुए रोगियों के लिए अच्छा रहता है |
मछली का तेल :-
इस योजना मे मछलियों के यकृत से प्राप्त किया जाता है जिसका औषधीय मूल्य होता है एवं इसमें विटामिन A प्रर्याप्त मात्रा में होता है मुख्य रूप से कांड लिवर और शार्क लिवर तेल को प्रयुक्त किया जाता है |
मत्स्य चूर्ण :-
इन मछलियों के अभक्ष्य भाग से बनाया जाता है जो इसमें 70% होता है तथा इन्हें प्राणी आहार में सम्पूरक की तरह अच्छे गुणों वाली प्रोटीन के रूप में उपयोग मे लाया जाता है मत्स्य चूर्ण अप्रत्यक्ष रूप से मानव पोषण से सम्बंधित है क्योंकि इन्हें पालतू जानवरों को खिलाया जाता है तथा बाद में प्राणियों को या उत्पादकों को मनुष्य अपने उपयोग में लेता है |
मछली की खाद :-
मछ्ली का तेल निकालने के बाद मछली के कचरे का उपयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है जिसे सान्द्रिता जीवांश खाद भी कहते है |
सौन्दर्यक मूल्य :-
इस छोटे आकार की मछलियों को जलजीवशाला में सुशोभित किया जाता है जेसे सोन मछली, परी मछली, मेन्क्रोफोस, ट्राइक्सास्टर |
मच्छरों के नियन्त्रण के लिए :-
ये बहुत सी लार्वा भक्षी मछलियाँ मच्छरों के लार्वा को खाकर उनका नियन्त्रण करती है जेसे गम्बुसीया, पेनकस, हेप्लोकाइट्स, ट्राकोगेस्टर नामक लार्वा भक्षी मछलियाँ |
वैज्ञानिक मूल्य :-
ये कुछ फेफड़ो वाली मछलियों का असंतोषजनक वितरण एवं उनकी शरीर रचना का जीव विज्ञान की दृष्टि से वैज्ञानिक महत्व है |
रोजगार :-
तालाबों में मत्स्य पालन एवं मछली पकड़ने का उद्द्योग विकास एवं रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करता है |
आय का स्रोत :-
यह उद्द्योग किसानों के लिए आय का स्रोत साबित हुआ है इससे राष्ट्रीय आय भी बढ़ी है मछली उत्पादन की बढ़ोतरी को नीली क्रान्ति नाम दिया गया है |
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